मन की दो सर्वज्ञात विशेषता है --- " चंचलता " एवं " सुख -लिप्सा "
कोई भी व्यक्ति भले ही चुपचाप बैठा रहे , कुछ न करे फिर भी उस स्थिति में भी उसे पूर्णत्या निष्क्रिय नहीं कहा जा सकता है !
क्यू कि उस स्थिति में भी " मस्तिष्क " कुछ न कुछ सोच रहा होता है भले ही वह जो सोच रहा है वो बिल्कुल अप्रसांगिक , असंबन्ध , अनावश्यक और अस्त - व्यस्त हो लेकिन ये भी अपना प्रभाव मस्तिष्क में अवश्य छोड़ देते है !
एक प्रसिद्ध कहावत है -- " मन जीता तो जगत जीता " >> एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर ब्रह्मा है ,और मन इन दोनों के बीच पल का काम करता है !
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt , please let me know .