Wednesday 16 February 2022

आत्मस्वरूप....?


 आज इस भागम -भाग ज़िंदगी में हमारा आत्मस्वरूप का अंत हो रहा है ये एक दिन में होने वाली घटना नहीं है ये निरन्तर हमारे द्वारा किये गए कार्य का प्रतिफल है जो स्थाईरूप से हमारी  मनोदशा में एक प्रश्न चिन्ह  के रूप में भी है। 

हमने अपने लिए एक ऐसा वातावरण घटित कर रखा है कि हमारी स्मृति और चिंतन दोनों का पतन हो रहा है। 

हम जो  " श्रवण " करते है उसे ही धारण कर लेते है और उसके बाद उसी का  " मनन " करते है फिर उसी के बारे में  " चिंतन " करते रहते है। 

हम बिना विचार किये उसे आत्मस्वरूप मान लेते है बल्कि हमने अपना ज्ञान और विवेक का साथ नहीं लिया और न ही इस बात को गंभीरपूर्वक और आत्मस्मृति से जोड़ा , जिसके फलस्वरूप हम जो भी कार्य करते है वो थोड़े समय के लिए हमें सुख कि अनुभूति कराता है इसके पश्चात हमे निराशा ही हाथ लगती है।  

Sunday 13 February 2022

स्वस्थ दृष्टिकोण ....

परिस्थितियों से  हतासा ......,

गरीबी से निराशा.....

 और बीमारियों के कारण टूटी हुई जीवन कि आशा......। 

  •     आत्महत्या की कापुरुषता के लिए उकसाती है। इन प्रयाशों में मनोबल का अभाव ही कारण है।  ऐसा नहीं है कि सिर्फ मनोबल का कि अभाव है कभी कभी प्रमुख कारण " प्रतिशोध की भावना " भी है। 

इसका एक यह भी प्रमाण है कि आत्महत्या करने वाली बहुओ में से ७०% अपने ससुराल में ही आत्महत्या कर लेती है।  इसका कारण वह है कि आज कल जहा बहू को दूसरे के घर से आयी हुई लड़की और " मुफ्त कि नौकरानी " समझती है और बहू भी सास को माँ के स्थान पर प्रतिष्ठान नहीं कर पाती है। 

एक दूसरे कि अपेक्षाएं पूर्ण न होने से उत्पन्न होता है --- " गृह-कलह "

परिवार  का एक अलग वातावरण बन जाता है। 








रोग निवारण !


 " रोग " पहले मन में प्रवेश करता है फिर हमारे शरीर मे उभरते है। 

     * शरीर में चेतना का अधिकार है।  
            * शरीर  पर मन का अधिकार है।  

यह देखा  गया है कि --" शंका डायन --मंशा भूत "

छोटे रोग को बड़ा मान लेने से ही विपत्ति हो जाती है। जितने लोग मौत से मरते है उससे अधिक मौत के डर से मरते है। 

चिकित्सा का प्रधान कार्य रोगी का  " मनोबल "  बनाये रखना है। जितना काम दवा करती है उससे कही ज्यादा रोगी का धैर्य , संयम और विश्वास काम करता है अगर इसे गवा दिया तो रोगी बेमौत मारा जायेगा।  

Saturday 12 February 2022

G E N T L E M A N ...

 

 A man of good social position, especially one of wealth and leisure..




सर्वोपरि - कला - कौशल ....

 ---मानसिक संतुलन के चार पक्ष होते है---

सतर्कता -सजगता 

विचार -प्रवाह 

व्यवहार -अभ्यास 

रुझान -उत्साह 

इन चारो का सुव्यवस्थित क्रम चल पड़ने से मनुष्य मानसिक द्रष्टि से समर्थ एवं सुविकसित बनता है.

यह एक जीवन की अनमोल निधि नहीं बल्कि एक कला है इसके माध्यम से ही जीवन को हरा -भरा , पल्लवित-पुष्पित और सुखी -शांत बनाया जा सकता है !



मानसिक संतुलन ?

मन की दो सर्वज्ञात विशेषता है --- " चंचलता "   एवं   " सुख -लिप्सा " 

कोई भी व्यक्ति भले ही चुपचाप बैठा रहे ,  कुछ न करे फिर भी उस स्थिति  में भी उसे पूर्णत्या निष्क्रिय नहीं कहा जा सकता  है !

क्यू कि उस स्थिति में भी " मस्तिष्क " कुछ न कुछ सोच रहा होता है भले ही वह जो सोच रहा है वो बिल्कुल अप्रसांगिक , असंबन्ध , अनावश्यक और अस्त - व्यस्त हो लेकिन ये भी अपना प्रभाव मस्तिष्क में अवश्य छोड़ देते है !

एक प्रसिद्ध कहावत है -- " मन जीता तो जगत जीता "    >> एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर ब्रह्मा है ,और मन इन दोनों के बीच पल का काम करता है !

 


 

Friday 11 February 2022

L I F E .....?

"L I F E " is not finding yourself life is creating yourself "

सही मायने में ज़िंदगी क्या है ??

बहुत से लोगो  ने अपनी ज़िंदगी तय कर रखा है अपनी तरह से या अपने तरीको से , वो खुद को समझ ही नहीं पा रहे  है या वो दुसरो  को समझा ही नहीं पा रहे है  ?

और कभी कभी हम खुद को भी अपनी ही ज़िंदगी से ही अलग कर देते है। बल्कि यह पूर्ण रूप से गलत है। 

थोड़ा सा अगर हम सोच के देखे और ये ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि बस सोच ले मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ा  सा अपने मन को शांत कर के और धैर्य पूर्वक देखे तो आप ही है सही मायने मे------" ज़िंदगी "!

क्यू कि अगर      "आप "    नहीं तो यह "     ज़िंदगी "   नहीं । 

जिस दिन सुबह अपने आप को शीशे के सामने देख के मुस्कुरा लिया और ये बोल दिया कि धन्यवाद इस ज़िंदगी का उस दिन आपके सामने 

कितनी भी मुश्किलें होंगी आप हमेसा ऊर्जावान रहेंगे और दुसरो की ज़िंदगी को भी महत्त्व  देंगे। 





 

इंतज़ार ??

 हालात कह रहे है मिलना है मुश्किल ,

लेकिन मिलना है मुमकिन थोड़ा इंतज़ार कर ले ......!

"हमे अपनी ज़िंदगी में सिर्फ इंतज़ार करना आता है और ये ही हमें सिखाया भी गया है। 

लेकिन अगर हम  थोड़ा रुक कर ,थोड़ा सोच के देखे और ये महसूस करे कि क्या जो हम कर रहे है वो पूरी तरह सही है या नहीं ?

इंतज़ार करने के बदले में हम क्यू न २ कदम हम चल ले और २ कदम वो चल ले तो शायद हम अपनी ज़िंदगी  में बहुत कुछ हासिल कर सकते है और बहुत कुछ खोने से भी  बचा सकते है। " #007


आत्मस्वरूप....?

 आज इस भागम -भाग ज़िंदगी में हमारा आत्मस्वरूप का अंत हो रहा है ये एक दिन में होने वाली घटना नहीं है ये निरन्तर हमारे द्वारा किये गए कार्य का ...

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