" रोग " पहले मन में प्रवेश करता है फिर हमारे शरीर मे उभरते है।
* शरीर में चेतना का अधिकार है।
* शरीर पर मन का अधिकार है।
यह देखा गया है कि --" शंका डायन --मंशा भूत "
छोटे रोग को बड़ा मान लेने से ही विपत्ति हो जाती है। जितने लोग मौत से मरते है उससे अधिक मौत के डर से मरते है।
चिकित्सा का प्रधान कार्य रोगी का " मनोबल " बनाये रखना है। जितना काम दवा करती है उससे कही ज्यादा रोगी का धैर्य , संयम और विश्वास काम करता है अगर इसे गवा दिया तो रोगी बेमौत मारा जायेगा।
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